दया धर्म का मूल है - एक निबंध
मानव जीवन का मूल्य क्या है? यह प्रश्न सदियों से दार्शनिकों, विचारकों और साधारण जनता के मन में उठता रहा है। इस प्रश्न का उत्तर अनेक रूपों में खोजा जाता है, परंतु एक बात निश्चित है - दया ही जीवन का मूल है। दया ही धर्म का मूल है, जिससे सारी मानवता की नींव पक्की होती है।
दया का अर्थ है, किसी के दुख को समझना, उससे सहानुभूति रखना और उसे दूर करने का प्रयास करना। दया केवल भावना नहीं होती, बल्कि एक क्रिया भी होती है। जब हम किसी के दुख को देखते हैं, तो हम उसकी मदद करने के लिए प्रेरित होते हैं, चाहे वो भूखा हो, बीमार हो, या किसी प्रकार की पीड़ा में हो।
दया का महत्व धर्म के विभिन्न ग्रंथों में बार-बार बताया गया है। भगवद् गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं - "दया, क्षमा, सत्य, नियंत्रण, शांति, सन्तोष, ज्ञान, त्याग, और आस्था, ये सभी कर्म योग के अंग हैं।" इसी प्रकार, बुद्ध ने कहा - "सभी प्राणियों के साथ प्रेम और करुणा रखो।" ये सभी धर्मों के मूल सिद्धांत हैं, जो मानवता की नींव को मजबूत करते हैं।
दया समाज के लिए एक सकारात्मक शक्ति है। यह हमें एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति और सम्मान रखने के लिए प्रेरित करती है। दया के माध्यम से हम अपने आस-पास की दुनिया को बेहतर बना सकते हैं। दया से ही समाज में प्रेम, सद्भाव और शांति का माहौल बनता है।
दया का अभाव समाज के लिए हानिकारक है। अगर हम दया से वंचित रहेंगे, तो हम अपने आस-पास की दुनिया में दुख और पीड़ा देखते रहेंगे और उससे बिलकुल भी प्रभावित नहीं होंगे। दया का अभाव समाज में अत्याचार, हिंसा और विद्वेष को जन्म देता है।
दया का अभ्यास करना, अन्य लोगों की मदद करना, और उनके दुख को समझना, ये सब हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। दया के माध्यम से हम अपने आप को और अपने समाज को बेहतर बना सकते हैं। दया ही हमारे जीवन का असली मूल्य है, और यही धर्म का मूल सिद्धांत है।