मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
धर्म का अर्थ है, जीवन का मार्गदर्शन करने वाला सिद्धांत, मान्यताओं और आचरणों का एक समूह। सभी धर्मों का मूल उद्देश्य मानवता को बेहतर बनाना, शांति, प्रेम और सद्भाव का प्रसार करना होता है। लेकिन दुर्भाग्य से, इतिहास गवाह है कि धर्म के नाम पर अक्सर हिंसा, द्वेष और बैर का प्रसार हुआ है।
यह सच है कि कुछ धार्मिक ग्रंथों में ऐसे अंश मिलते हैं जो दूसरे धर्मों के प्रति नकारात्मक भावनाओं को उकसाते हैं। लेकिन यह समझना आवश्यक है कि धर्म का असली अर्थ नहीं है दूसरे धर्मों को नीचा दिखाना या उनके साथ बैर रखना। धर्म, सच्चे अर्थों में, सहिष्णुता, दया और करुणा का प्रचार करता है।
यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम अपने धार्मिक ग्रंथों का अर्थ कैसे समझते हैं। यदि हम ग्रंथों के साहित्यिक अर्थ को समझने के बजाय, अपनी व्यक्तिगत दुर्भावनाओं के लिए उनका इस्तेमाल करते हैं, तो हम धर्म के मूल्यों को विकृत करते हैं।
समाज में हिंसा और बैर का मूल कारण अज्ञानता, भेदभाव और अविश्वास है। हम सब मनुष्य हैं और हमें एक-दूसरे के प्रति सम्मान और प्रेम का भाव रखना चाहिए। धर्म को हमारे बीच की दीवारें न बनाएं, बल्कि एक दूसरे को समझने और सहयोग करने का माध्यम बनें।
हमें याद रखना चाहिए कि सभी धर्मों में अच्छे और सच्चे शिक्षाएं मौजूद हैं। धर्म का असली उद्देश्य मनुष्य को बेहतर बनाना है, उसे सेवा, दया और प्रेम के मार्ग पर चलना सिखाना है।
अगर हम धर्म की शिक्षाओं को अपने जीवन में लागू करेंगे, तो समाज में शांति और सद्भाव का वातावरण बनेगा। हमें धर्म के नाम पर बैर और हिंसा को त्यागना होगा और एक-दूसरे के प्रति प्रेम, सहयोग और एकता का भाव विकसित करना होगा।