लड़के और लड़कियाँ: समानता का आलिंगन
समाज में सदियों से चली आ रही एक मान्यता है कि लड़के और लड़कियाँ अलग हैं, उनके गुण, रुचियाँ और व्यवहार में भारी अंतर है। लेकिन क्या सच में ऐसा है? क्या हम इस अंतर को सच्चे अर्थों में स्वीकार करते हैं, या यह सिर्फ़ हमारे द्वारा निर्मित एक सामाजिक ढाँचा है?
अगर हम गहराई से देखें तो पाएँगे कि लड़के और लड़कियाँ बहुत सारे तरीकों से एक दूसरे से मिलते जुलते हैं। जैसे, दोनों ही सीखने के लिए उत्सुक होते हैं, दोनों ही प्यार और स्नेह की तलाश करते हैं, दोनों ही दोस्ती, सहयोग और समर्थन की ज़रूरत महसूस करते हैं। दोनों ही अपने-अपने तरीके से भावनाएँ व्यक्त करते हैं, दोनों ही खुशियाँ, दुख, गुस्सा, निराशा और प्यार का अनुभव करते हैं।
लड़कों को अक्सर "मर्दाना" गतिविधियों जैसे खेल, यांत्रिकी और प्रतिस्पर्धा से जोड़ा जाता है। लड़कियों को "नारी" गतिविधियों जैसे नृत्य, कला और देखभाल से जोड़ा जाता है। लेकिन ये सिर्फ़ सामाजिक मानदंड हैं, सच्चाई से मेल नहीं खाते। कई लड़कियाँ खेलों में रुचि रखती हैं, जबकि कई लड़के कला और संगीत से जुड़ते हैं।
सच तो यह है कि लड़के और लड़कियाँ दोनों ही विभिन्न क्षेत्रों में समान रूप से सक्षम हैं। उनमें समान क्षमताएँ और प्रतिभाएँ होती हैं। हमें उनकी इस समानता को स्वीकार करना चाहिए और उन्हें उसी तरह के अवसर प्रदान करने चाहिए।
हम सभी को यह समझना चाहिए कि लिंग सिर्फ़ एक सामाजिक रचना है, वास्तविकता नहीं। लड़के और लड़कियाँ दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं, वे मिलकर समाज की एक मजबूत नींव बनाते हैं। हमें इस समानता को मानकर आगे बढ़ना चाहिए, उन्हें अपनेपन और सम्मान के साथ स्वीकार करना चाहिए।