बंदर, बिल्ली और दोस्ती
एक जंगल में एक चालाक बंदर रहता था, जिसका नाम चाचा बंदर था। वह हर समय शरारतें करता रहता था और सभी जानवरों को परेशान करता था। एक दिन, चाचा बंदर एक पेड़ पर बैठा हुआ था, और नीचे एक झाड़ी में दो बिल्लियाँ सो रही थीं।
चाचा बंदर को बिल्लियों को परेशान करने का मन हुआ। उसने एक पत्थर उठाया और उसे एक बिल्ली पर फेंका। बिल्ली उछलकर खड़ी हो गई और चाचा बंदर को गुस्से से देखने लगी। दूसरी बिल्ली भी जाग गई और दोनों बिल्लियाँ चाचा बंदर पर भौंकने लगीं।
चाचा बंदर हँसने लगा। उसे बिल्लियों का गुस्सा देखकर बहुत मज़ा आ रहा था। उसने कहा, "तुम्हें क्या हुआ, बिल्लियाँ? इतनी जल्दी क्यों उठ गईं? क्या तुम्हें नींद नहीं आई?"
बिल्लियों ने कहा, "तुमने हम पर पत्थर क्यों फेंका?"
चाचा बंदर ने कहा, "मैं बस मज़ाक कर रहा था। तुम्हें इतनी जल्दी गुस्सा क्यों आता है?"
बिल्लियाँ और भी गुस्से में आ गईं। उन्होंने चाचा बंदर को दौड़ाना शुरू कर दिया। चाचा बंदर भागने लगा, लेकिन बिल्लियाँ उससे तेज़ थीं। आखिरकार, बिल्लियाँ चाचा बंदर को पकड़ ही लिया।
चाचा बंदर बहुत डर गया था। उसने बिल्लियों से माफ़ी मांगी और कहा कि वह फिर कभी ऐसा नहीं करेगा। बिल्लियाँ चाचा बंदर की माफ़ी स्वीकार कर लीं और उसे जाने दिया।
उस दिन से, चाचा बंदर ने बिल्लियों को परेशान करना बंद कर दिया। उसने सीख लिया कि हर किसी के साथ प्यार और दोस्ती से पेश आना ज़रूरी है। बिल्लियाँ और चाचा बंदर अच्छे दोस्त बन गए और साथ में खेलने लगे।