कंप्यूटर का किस्सा
कंप्यूटर बाबू, एक अजीबो-गरीब प्राणी,
चमकता रहता, सुबह से लेकर रात्रि के जानी।
बटन दबाओ, आवाजें निकलें, न जाने क्या कहता,
कभी-कभी हँसता भी, कभी-कभी रोता भी, मजा आता।
दिलचस्प होता, इसका काम है जटिल,
लिखता, पढ़ता, गीत गाता, खेलता है बिलकुल।
लेकिन कभी-कभी, मूड हो जाता है खराब,
फिर भांग पड़ती है, न चलता है, न बोलता, न खाता।
इंटरनेट का नाम लेते ही, हो जाता है पागल,
टिकट, बिल, फिल्म, सबकुछ, बस क्लिक करो, आ जाता है।
लेकिन खोलता नही, अगर कोई वायरस आ जाए,
फिर माथापच्ची है, सबको, न जाने कैसे ठिकाने लगाए।
हमें तो बस कंप्यूटर पर, प्यार ही प्यार,
लेकिन वो भी जिद करता, कभी-कभी, न करेगा हमारा प्यार।
तो फिर क्या करें? मर जाएँ? नहीं,
बस थोड़ा धैर्य रखें, ठीक हो जाएगा, ये खिलौना प्यारा।
कंप्यूटर बाबू, हँसी-खुशी, ज़िन्दगी का साथी,
लेकिन कभी-कभी, बहुत परेशानी भी देता है, ये सच है।
फिर भी, हमसे प्यारा, कोई नहीं, इस दुनिया में,
हमें तो बस उससे, प्यार ही प्यार, है हरदम।