परीक्षा - कहानी का सारांश
"परीक्षा" मुंशी प्रेमचंद की एक प्रसिद्ध कहानी है, जो भारतीय समाज में शिक्षा की अवस्था और सामाजिक असमानता को उजागर करती है. कहानी में दो मुख्य पात्र हैं:
* श्यामलाल: एक गरीब लेकिन मेहनती छात्र, जो उच्च शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा रखता है.
* बालमुकुंद: एक धनी और अभिजात वर्ग का छात्र, जो अपने पिता के धन और प्रभाव से लाभ उठाता है.
कहानी की शुरुआत श्यामलाल की गरीबी और संघर्षों के साथ होती है. उसे अपनी पढ़ाई के लिए पैसे कमाने पड़ते हैं और उसे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. दूसरी तरफ, बालमुकुंद को सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं, लेकिन वह आलसी और अभिमानी है.
दोनों छात्र एक ही परीक्षा में बैठते हैं. परीक्षा में, बालमुकुंद अपनी नकल और धोखे से सफल होने की कोशिश करता है. श्यामलाल, मेहनत और ईमानदारी से परीक्षा देता है.
परिणाम में, श्यामलाल परीक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन करता है जबकि बालमुकुंद असफल हो जाता है. यह परिणाम दोनों पात्रों के लिए एक बड़ी परीक्षा बन जाता है.
श्यामलाल की सफलता उसकी मेहनत और ईमानदारी का परिणाम होती है. वह अपनी गरीबी और कठिनाइयों को पार करके अपनी प्रतिभा को सिद्ध करता है. बालमुकुंद की असफलता, उसकी आलसीपन और नकल करने की आदत का परिणाम होती है. वह अपने पिता के धन और प्रभाव का गलत उपयोग करके, अपनी शिक्षा का महत्व समझने में विफल रहा.
इस कहानी के माध्यम से, प्रेमचंद ने शिक्षा के महत्व और मेहनत की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है. उन्होंने यह भी दिखाया है कि धन और प्रभाव, सच्ची प्रतिभा और मेहनत का विकल्प नहीं हो सकते. "परीक्षा" कहानी यह सन्देश देती है कि सच्ची सफलता केवल ईमानदारी और मेहनत से प्राप्त होती है.