अगर मैं अदृश्य हो जाती तो...
एक अजीब सी चाहत, एक अनोखी इच्छा, अगर मैं अदृश्य हो जाती तो क्या होता? मन में कई सवाल उठते हैं, कई सपने, कई डर भी।
अगर मैं अदृश्य हो जाती तो, सबसे पहले तो मैं दुनिया की सच्चाइयों को नंगी आँखों से देख पाती। लोग क्या कहते हैं, क्या सोचते हैं, सब कुछ मेरे सामने खुला होता। राजनीति, समाज, धर्म, सभी के छिपे हुए चेहरे सामने आ जाते। मैं बिना किसी डर के लोगों की असली सोच को समझ पाती।
दूसरे, मैं दुनिया के सबसे बड़े रहस्यों को सुलझा सकती। विज्ञान, इतिहास, कला, सभी क्षेत्रों में मेरे लिए नई जानकारियाँ खुल जातीं। मैं महान वैज्ञानिकों के विचारों को समझ सकती, प्राचीन सभ्यताओं के राज़ खोल सकती, और कला के सच्चे अर्थ को समझ सकती।
तीसरे, मैं लोगों की मदद कर सकती, बिना उनके ध्यान में आए। बेबसों की रक्षा, जरूरतमंदों की सहायता, मैं अदृश्य हाथ बनकर उनके लिए सहारा बन सकती। किसी को भी दुख ना पहुँचाए बिना, गुप्त रूप से दुनिया को बेहतर बना सकती।
लेकिन, अदृश्य होना आसान नहीं है। अकेलापन, अलगाव, एक ऐसी कड़ी सच्चाई है जो मुझे घेरे रहती। मेरी पहचान, मेरे अस्तित्व को लेकर अनिश्चितता, मुझे डर भी सताती है।
और फिर सबसे बड़ा सवाल, क्या मैं अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल करूँगी? क्या मैं अपनी अदृश्यता का लाभ उठाकर किसी को नुकसान पहुंचाऊँगी? ये डर मुझे लगातार सताता है।
अदृश्य होना एक ऐसा सपना है, जो साथ ही एक भयावह सच्चाई भी है। मेरी अदृश्यता मुझे दुनिया की सच्चाइयों को देखने का मौका तो देगी, लेकिन साथ ही एक अकेलेपन में भी डुबा देगी। यह चुनौतीपूर्ण सफर होगा, जहाँ मुझे अपनी ताकत का सही इस्तेमाल करना होगा और अपनी अदृश्यता को एक जिम्मेदारी के तौर पर देखना होगा।